

मेट्रो रेलवे, कोलकाता – संस्कृति, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण अनुकूलता का अद्भुत संगम
कोलकाता देश की सांस्कृतिक राजधानी के साथ-साथ ‘सिटी ऑफ ज्वाय’ के रूप में भी लोकप्रिय है। कोलकाता शहर का अभ्युदय 1690 में तीन छोटे गांवों – सूतानुटि, गोविंदपुर एवं कालीकाता के मिलन से हुआ। परंतु, तब से यह शहर पिछले तीन दशकों में विस्तार करता हुआ एक महानगर तथा पूर्वी भारत का एक प्रमुख व्यापारिक एवं वाणिज्यिक केंद्र के रूप स्थापित हो गया है और इसे काफी समय तक देश की राजधानी होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। अपनी अस्तित्व की लंबी अवधि में अक्सर भारत की संस्कृति का गढ़ कहे जानेवाले इस प्राचीन शहर ने अनेकानेक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनैतिक उतार-चढ़ाव देखे हैं। इसेविभिन्न प्रकार की समस्याओं से भी जूझना पड़ा है जिसमें परिवहन की समस्या विशेष रूप से अधिक विकट रही है। यह समस्या निरंतर बढ़ते शहरीकरण एवं निवासियों एवं अनिवासियों की जनसंख्या में वृद्धि के कारण उत्पन्न हुआ है। मेट्रो रेलवे कोलकाता इस वृहत शहर के परिवहन तंत्र की ‘जीवन रेखा’ के रूप में स्थापित होकर स्वयं को सम्मानित एवं गौरवन्वित महसूस करती है।
यह शहर उत्तर-पूर्व का प्रवेश द्वार भी है। व्यापार के सिलसिले में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कोलकाता में आगमन 1960 में हुआ और तब से यह शहर तीव्र गति से विकसित होता चला गया। कोलकाता उन प्रमुख शहरों में से एक था जहां ब्रिटिश शासकों के विरूद्ध स्वाधीनता आंदोलन की परिकल्पना साकार हुई। यह शहर अरविंदो घोष, खुदीराम बोस, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, देशबंधु चित्तरंजन दास, बिनय-बादल-दिनेश जैसे अनेकानेक स्वतंत्रता सेनानियों का शहर था।
यह प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता एवं देश के महान कवि गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक क्रियाकलापों का यह ‘शहर’ था। 19वीं सदी में बंगाल में पुनर्जागरण की लहर कोलकाता से ही प्रारंभ हुई तथा इस पुनर्जागरण की ज्योति ने समाज में स्त्रियों के उत्थान एवं शिक्षा के प्रसार के क्षेत्र में समाज को जागरूक करने में देश के लोगों पर गहरा प्रभाव डाला। यह शहर महान समाज सुधारकों श्री रामकृष्ण परमहंस देव, स्वामी विवेकानंद, सिस्टर निवेदिता, महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर, राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, केशव चंद्र सेन एवं अन्य महान विभूतियों की भी कर्मभूमि रही है। यह शहर महान वैज्ञानिकों जैसे आचार्य जगदीशचंद्र बोस, डॉ. मेघनंद साहा,आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की भी कर्मस्थली रही है। कोलकाता शहर नोबल पुरस्कार से सम्मानित मदर तेरेसा की भी कर्मभूमि रही है जिन्होंने मानवता की सेवा में स्वयं को समर्पित करने के लिए इस शहर का चयन किया। यह ऑस्कर पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक सत्यजित रे की भी कर्मभूमि है। सारांशत: कोलकाता की मिट्टी इन महान विभूतियों के चरण स्पर्श से धन्य हुई है।
महान समाज सुधारक

कोलकाता की बढ़ती हुई परिवहन समस्या ने नगर योजनाकारों, राज्य सरकार तथा भारत सरकार का भी ध्यान आकृष्ट किया। शीघ्र ही यह महसूस किया गया कि स्थिति से निपटने के लिए तुरंत ही कुछ किया जाना आवश्यक है। यह पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. बी.सी.राय थे जिन्होंने 1949 में पहली बार इस समस्या को कुछ हद तक दूर करने के लिए कोलकाता में एक भूमिगत रेलवे के निर्माण की परिकल्पना की।
फ्रांसीसी विशेषज्ञों के एक दल द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया परंतु कुछ भी ठोस परिणाम नहीं निकला। मौजूदा परिवहन साधनों के बेड़े में वृद्धि कर समस्या को हल करने का प्रयास नाकाफी साबित हुआ, चूंकि कोलकाता में सड़कों की प्रतिशत दिल्ली के 25% एवं कई अन्य शहरों में 30% की तुलना में मात्र 4.2% ही थे। कोलकाता वासियों की पीड़ा को कम करने के लिए वैकल्पिक उपाय की खोज के उद्देश्य से 1969 में महानगरीय परिवहन परियोजना (रेलवे) की स्थापना की गई। विस्तृत अध्ययन के बाद एमटीपी (रेलवे) इस निर्णय पर पहुँची कि जन द्रुत परिवहन प्रणाली के निर्माण को छोड़कर अन्य कोई विकल्प नहीं है। कोलकाता शहर के लिए 97.5 किमी. की कुल मार्ग लंबाई के साथ पांच द्रुत परिवहन लाइनों के निर्माण की परिकल्पना करते हुए एमटीपी (रेलवे) ने 1971 में एक महायोजना तैयार की। उनमें से 16.45किमी. लंबी दमदम एवं टॉलीगंज के बीच व्यस्ततम उत्तरी-दक्षिणी ध्रुव को उच्च प्राथमिकता दी गई तथा इस परियोजना के लिए कार्य को 1.6.72 को स्वीकृति प्रदान की गई। इस परियोजना की आधारशिला 29 दिसंबर, 1972 को भारत की तात्कालिन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा रखी गई तथा निर्माण कार्य 1973-74 में पूरा हुआ।
निर्माणकार्य के प्रारंभ से ही परियोजना को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा जैसे कि 1977-78 तक पर्याप्त निधि की अनुपलब्धता, भूमिगत उपयोगी वस्तुओं का स्थानांतरण, अदालती अड़चनें, प्रमुख सामग्री एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की अनियमित आपूर्ति आदि। परंतु असंख्य बाधाओं को पार करते हुए एवं अविश्वास की सभी रूकावटों को पार करते हुए भारत की प्रथम एवं एशिया की पांचवीं कोलकाता मेट्रो एस्पलानेड से भवानीपुर के बीच पांच स्टेशनों के साथ 3.40 किमी. के विस्तार पर 24 अक्टूबर, 1984 को अपने आंशिक सेवा के चालू होते ही वास्तविकता में परिणत हो गई। इसके तुरंत बाद ही 12 नवंबर, 1984 को उत्तर में दमदम एवं बेलगछिया के बीच 2.15 किमी. के विस्तार पर यात्री सेवा प्रारंभ की गई।
पुन: 4.24 किमी. के विस्तार पर 29 अप्रैल, 1986 को टॉलीगंज तक यात्री सेवा का विस्तार किया गया जिससे समग्र विस्तार 9.79 किमी. हो गया एवं इसमें 11 स्टेशनें शामिल थे।फिरभी उत्तरी खंड में 26.10.92 से सेवा को निलंबित रखा गया चूँकि यह अलग-थलग छोटा खंड यात्रियों के लिए आकर्षक नहीं रह गया था। आठ वर्षों के अंतराल के बाद 13 अगस्त, 1994 को दमदम-बेलगछिया विस्तार के साथ-साथ बेलगछिया-श्यामबाजार खंड को चालू किया गया। उसके तुरंत बाद एस्प्लानेड से चांदनी चौक तक अन्य 0.71 किमी विस्तार को 2 अक्टूबर,1994 से चालू किया गया। श्यामबाजार-शोभाबाजार-गिरिश पार्क (1.93) एवं चांदनी चौक –सेंट्रल (0.60 किमी.) खंडों को 19 फरवरी, 1995 से प्रारंभ किया गया। मध्य के 1.80 किमी. के मुख्य अंतराल को पाटते हुए 27 सितंबर, 1995 को मेट्रो के समूचे विस्तार पर यात्री सेवा प्रारंभ की गई। इस प्रकार एक स्वप्न साकार हुआ। महानायक उत्तम कुमार से कवि नजरुल स्टेशन तक 5.834 किमी. लंबा द्वितीय चरण को अगस्त - 2009 में पूरा किया गया। अंतिम चरण में कवि सुभाष तक 2.851 किमी. के विस्तार पर 8 अक्टूबर, 2010 से वाणिज्यिक सेवा प्रारंभ कर दी गई है।